इसमें तो कोई दो राय नहीं की संत कवियो ने जिस विचारधारा को लेकर रचना की उसका मूल सिद्ध तथा नाथ साहित्य में है। इसमें भी कोई असहमति नहीं है की इन कवियों की रचना सरल भाषा में सहज रूप में हैं
संत कवियों ने निगुर्ण साधना को अपनाया। अवतारवाद की बात इन कवियों ने नहीं की.लगभग सब संत अपढ़ थे परंतु अनुभव की दृष्टि से समृध्द थे। प्रायः सब सत्संगी थे और उनकी भाषा में कई बोलियों का मिश्रण पाया जाता है इसलिए इस भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ कहा गया है। साधारण जनता पर इन संतों की वाणी का ज़बरदस्त प्रभाव पड़ा है। इन संतों में प्रमुख कबीरदास थे। अन्य मुख्य संत-कवियों के नाम हैं – नानक, रैदास, दादूदयाल, सुंदरदास तथा मलूकदास
क्योंकि निर्गुण साधना का आलम्बन निराकार है, फलस्वरूप वह जन साधारण के लिए सहज ग्राह्य नहीं हो पाती. बहुत से लोगों का मानना है की निर्गुण ब्रह्मज्ञान का विषय तो हो सकता है किंतु भक्ति साधना का नहीं, क्योंकि साधना तो किसी साकार मूर्त और विशिष्ट के प्रति ही उन्मुख हो सकती है। सामान्य जनता का विश्वास और आचरण भी इसी तर्क की पुष्टि करता दिखाई देता है। ब्रह्म के दो रूप विद्यमान हैं सगुण और निर्गुण। सगुण रूप की अपेक्षा निर्गुण रूप दुर्लभ है, सगुण भगवान सुगम है-
सगुण रूप सुलभ अति,
निर्गुण जानि नहीं कोई,
सुगम अगम नाना चरित,
सुनि-सुनि मन भ्रम होई।
संत मत के अनुसार आत्मा-परमात्मा का अंश है. ज्ञानपूर्ण भक्ति को कबीर राम, सत्यपुरुष, अलख निरंजन, स्वामी और शून्य आदि से पुकारते हैं. निर्गण की उपासना, मिथ्याडंबर का विरोध, गुरु की महत्ता, जाति-पांति के भेदभाव का विरोध, वैयक्तिक साधना पर जोर, रहस्यवादी प्रवृत्ति, साधारण धर्म का प्रतिपादन, विरह की मार्मिकता, नारी के प्रति दोहरा दृष्टिकोण, भजन, नामस्मरण, संतप्त, उपेक्षित, उत्पीड़ित मानव को परिज्ञान प्रदान करना आदि संत काव्य के मुख्य प्रयोजन हैं.
संत शाखा के (आराध्य) “राम” तो अगम हैं और संसार के कण-कण में विराजते हैं। कबीर के राम इस्लाम के एकेश्वरवादी, एकसत्तावादी खुदा भी नहीं हैं। इस्लाम में खुदा या अल्लाह को समस्त जगत एवं जीवों से भिन्न एवं परम समर्थ माना जाता है। पर कबीर के राम परम समर्थ भले हों, लेकिन समस्त जीवों और जगत से भिन्न तो कदापि नहीं हैं। बल्कि इसके विपरीत वे तो सबमें व्याप्त रहने वाले रमता राम हैं।
संत शाखा की साधना ‘‘मानने से नहीं, ‘‘जानने से आरम्भ होती है।कबीर जैसे संत किसी के शिष्य नहीं, रामानन्द जैसे गुरु द्वारा चेताये हुए चेला हैं। उनके लिए राम रूप नहीं है, दशरथी राम नहीं है, उनके राम तो नाम साधना के प्रतीक हैं। उनके राम किसी सम्प्रदाय, जाति या देश की सीमाओं में कैद नहीं है। प्रकृति के कण-कण में, अंग-अंग में रमण करने पर भी जिसे अनंग स्पर्श नहीं कर सकता, वे अलख, अविनाशी, परम तत्व ही राम हैं। उनके राम मनुष्य और मनुष्य के बीच किसी भेद-भाव के कारक नहीं हैं। वे तो प्रेम तत्व के प्रतीक हैं।
निर्गुण निराकार अर्थात जिसमें कोई गुण नहीं जिसका कोई आकार नहीं मतलब कुछ भी नहीं केवल ख्याली पुलाव है कुछ भी नहीं और सोचे जा रहे है
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Keep writing.
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Param mukti ka adhar last time god name god me vilay
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