तब जब मैं
रात के उगने पर
महफ़िल सजाकर
देश के भविष्य से लेकर जीवन मूल्यों तक
सुलगती सिगरेट के साथ कर रहा होता हूँ विचार विमर्श
वो बस्ती के
किसी कोने में
निश्चिन्त भाव से
तकिया सर के नीचे दबा
ऊंघ रहा होता है
जानता है
सबकुछ वैसा ही रहेगा जैसा था कल
और मैं इस मुगालते मैं जीता हूँ
कि
अमरत्व किसी को नहीं प्राप्त